■ग़ज़ल : •गोविंद पाल.
3 years ago
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●आदमी अब इस कदर गिर गये ‘गोविंद’
●जिंदगी एक फटे हुए कैलेंडर हो गये.
-गोविंद पाल
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
पोखर के हैसियत वाले आज समंदर हो गये,
दिशा हवाओं के बदल वह मंजर हो गये।
सजाये थे हमने जिनके लिए गुलदस्तें,
कांटे उनके घरके अंदर हो गये।
जख्मों के ताजिर कितने बेरहम होते हैं,
मिट्टी के पुतले भी पत्थर हो गये।
जिनके लिए सींचा था खून- पसीना,
आज वह जहरीले खंजर हो गये।
आवाम का खूँ इतना ठंडा पड़ गया,
इंसानियत के दुश्मन सिकंदर हो गये।
जानते हैं सभी को जाना है इक दिन,
फिर भी लोग घमंड से कलिंदर हो गये।
सच्चाई की जुबाँ इस कदर काट दी गई,
हर तरफ झूठ के बवंडर हो गये।
कल जिसने भी छीना दूसरों के हिस्से की जमीं,
उनके हिस्से की जमीं आज बंजर हो गये।
आदमी अब इस कदर गिर गये “गोविंद”
जिंदगी एक फटे हुए कैलेंडर हो गये।
●कवि संपर्क-
●75871 68903
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chhattisgarhaaspaas
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