रचना आसपास :डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
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ग़ज़ल
– डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
[ रायपुर छत्तीसगढ़ ]
ऐसे रँग देंगे हम धो ना पाओगे तुम
फिर किसी और के हो ना पाओगे तुम
हाँ ना कह पाओगे ना न कह पाओगे
आँखें भर जाएंगी रो ना पाओगे तुम
आ ना जाए कोई चुपके से द्वार पर
सोचकर रातभर सो ना पाओगे तुम
है शरारत हवाओं में भी इन दिनों
बोझ दिल पर अभी ढो ना पाओगे तुम
कुछ भी होता है जानम ग़मे इश्क़ में
खो चुका जो उसे खो ना पाओगे तुम
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