दो बाल गीत- संतोष झांझी
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●आती है रेल
आती है रेल
जाती है रेल
सामान से भरी
ये पेलमपेल
भरे हैं लोग
यहाँ ठेलम ठेल
बच्चों को फिर भी
सूझे है खेल
मचलते हैं वो
खाने को भेल
उनकी शरारत
करने को फेल
हरपल उनको
लगाना है तेल
यात्रा लंबी
लगती है जेल
पर मजबूरी
रहें है झेल
माँ से लिपटी
मुन्नी ज्यों बेल
बिछड़े हुओं का
कराती है मेल
आती है रेल
जाती है रेल
●नन्हीं चिड़िया
ओ मेरी गुड़िया
देख नन्हीं चिड़िया
मुंह में है दाना
गाती है गाना
ढूंढती झरोखा
जहाँ न हो धोखा
आती कभी जाती
तिनके सजाती
बच्चों को बिठाती
दाना खिलाती
रात दिन जगकर
पास पास रहकर
बच्चो को लेकर
धीरे धीरे उड़कर
सिखलाती उड़ना
कभी नहीं लड़ना
हंसना हंसाना
खेलना खिलाना
गीत गुनगुनाना
सदा मुस्कराना
ओ मेरी गुडिया
सिखलाती चिड़िया
●कवयित्री संपर्क-
●97703 36177