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परम पूज्य श्री अघोरेश्वर भगवान रामजी के महानिर्वाण दिवस 29 नवम्बर पर विशेष : अलौकिक शक्ति के स्वामी, करुणा, दया और कल्याण के प्रतिमूर्ति परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी

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अघोराचार्य बाबा कीनाराम परम्परा के अद्वितीय औघड़ संत अवधूत भगवान राम जी ने अध्यात्म को पूरी पवित्रता के साथ समाज व राष्ट्र हित में अघोर मत से जोड़ा और समाज व राष्ट्र की पूजा को गढ़े हुए देवताओं की पूजा से भी महान बताया। हर चेतनशील प्राणी आपके एक बार दर्शन प्राप्त करने या आशीर्वचन सुनने के बाद सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ आपके शरणागत हो जाता है।आपने संत ऋषिमुनियों महात्माओं की धाती को संरक्षित करते हुए अंध विश्वास, रूढ़िवाद, कुरीतियों,आडम्बर और पाखंड का कड़ा विरोध कर यथार्थ,वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ आध्यात्मिक चेतना की सत्यता को बड़े ही पवित्रता के साथ वैश्विक पटल और जन जन के हृदय में पहुंचाया।मानव सेवा की अखंड अघोर ज्योति प्रज्वलित किया।

अलौकिक शक्ति के स्वामी,करुणा,दया, और कल्याण के प्रतिमूर्ति थे – एक औघड़ लीक से हटकर –
एक सच्चे साधु- संत के बारे में कुछ लिख पाना बहुत कठिन होता है।वे अलख होते हैं।जब कोई व्यक्ति, संत या महात्मा अपनी संपूर्ण चेतना के साथ जन हित व विश्व कल्याणार्थ सदियों से चल रही परंपरा ,मान्यता या अवधारणा में परिवर्तन कर उसके मूलतत्व को जन जन तक पहुंचाता है तब वही सच्चे अर्थों में युगदृष्टा , युगप्रवर्तक, संत या महात्मा होता है।

परम पूज्य श्री अघोरेश्वर भगवान राम जी,शमशान की अघोर साधना को समाज से जोड़कर औघड़ की अवधारणा और विचार से समाज को साक्षात्कार कराया। इसीलिए आपको युगप्रवर्तक औघड़ संत,एक लीक से हटकर औघड़ की संज्ञा से विभूषित किया जाता है। मानव कल्याण ,समाज और राष्ट्र सेवा को ही परम लक्ष्य बनाया। आपने सर्वेश्वरी समूह की स्थापना कर सर्वप्रथम समाज से बहिष्कृत कुष्ठ रोगियों की सेवा का संकल्प लिया ।जब कुष्ठ रोगियों जिन्हें अछूत समझकर घर समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था उन्हें आप आश्रम में रखकर अपने ही हाथों से उनकी सेवा सुश्रुषा करते, जड़ीबूटियों से उनका इलाज करते स्वस्थ कर उन्हें समाज के मुख्यधारा में जोड़कर यथायोचित सम्मान दिलाया करते थे जिसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में पूरे सम्मान के साथ दर्ज किया गया है। अघोरेश्वर महाप्रभु भगवान राम जी के ब्रह्मलीन होने के बाद भी यह पुण्य सेवा कार्य आज भी निरन्तर जारी है।अघोर ,अध्यात्म का वाम मार्ग है।अघोर सरल और सहज है।जहां कोई भेदभाव, ऊंच-नीच,घृणा नहीं जो अभेद व घृणा रहित है।पूज्य अघोरेश्वर अलौकिक शक्ति के स्वामी थे करुणा,दया, और कल्याण के प्रतिमूर्ति थे।

औघड़ कोई पंथ नहीं है –
अघोरेश्वर महाप्रभु कहते हैं – “औघड़ कोई पंथ नहीं है,कोई मत नहीं है,यह पद है। हर तरह के साधु इस पद में हो सकते हैं और पाए जाते हैं।” औघड़ तांत्रिक नहीं होते।वे तंत्र में विश्वास नहीं करते,अनर्गल देवी देवता में विश्वास नहीं करते।वे आपकी श्रद्धा और विश्वास में विश्वास करते हैं और वे अपने आप में विश्वास करते हैं, न किसी बाहरी पर । इसीलिए वर्णाश्रम व्यवस्था के जन्मदाता आज भी औघड़ों को क्रूर दृष्टि से देखते हैं तथा इनके बारे में भ्रांतियां फैलाते हैं। जब पुरुष अघोरेश्वर की स्थिति में पहुँच जाते हैं तो उनकी भाषा ‘ना’, ‘हाँ’ से भी परे हो जाती है। वे सभी पदार्थों से और सभी कारणों से अनासक्त रहने लगते हैं। इस स्थिति को ही ‘संज्ञाशून्य अवस्था’ कहते हैं।आप सिद्धियों के प्रदर्शन व चमत्कार के सख्त खिलाफ थे।

मानवता ही धर्म है –
परम पूज्य श्री अघोरेश्वर ने समाज को अध्यात्म का ‘अघोर’ जो कठिन न हो बिल्कुल व्यवहारिक और सरल मार्ग बतलाया। आपने यह संदेश दिया कि -“ईश्वर ने कोई जाति, धर्म, समुदाय, भाषा आदि नहीं बनाया है। उसने हमें मनुष्य बना कर मनुष्यता के आचरण निमित्त इस लोक में भेजा है। यथार्थ में हमारी मूल जाति ‘मानव जाति’ है एवं हमारा धर्म “मानवता निर्वाह करना है” । “मनुष्य बनें; एवं मन, वचन तथा कर्म से मनुष्यता का निर्वाह करें।हिन्दू, मुस्लिम,सीख, ईसाई, बौद्ध,जैन, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि बनना आसान है;किन्तु सच्चे अर्थ में मनुष्य बनना कठिन है।इस युग तथा काल की पुकार है- कि हम अपनी मौलिक जाति’ मनुष्य जाति ‘ को भली भांति पहचानें।; एवं सचेत हो कर अपने मौलिक धर्म ‘मानवता’ का निर्वाह करें।”
आज की परिस्थतियों में मुदित मन से यह स्वीकार कर लेना बहुत बड़ी देन होगी कि- जाति,प्रांत,और विभिन्न भाषा भाषी क्षेत्रों के सभी लोग आदर, सम्मान और प्यार के पात्र हैं।नित्य के सभी भेद – भाव मिटाकर, वर्ण – व्यवस्था क प्रत्येक वर्ण, प्रत्येक जाति, उपजाति एवं टाट – भात के लोगों को एक ही हुक्का के अन्तर्गत संगठित कर भाई – चारा की व्यवस्था देने में धर्म भी सक्षम हो सकता है। चाहे भले ही वे भिन्न – भिन्न उपास्यों की उपासना करते हों।वे एक ही पुष्पमाला में गूंथे हुए भिन्न – भिन्न वर्णों की तरह हमारे राष्ट्र एवं समाज के अंग – स्वरूप ही हैं।” हे साधु! तुम जाति एवं वर्ण के भेद को बिल्कुल नहीं मानो यही तुम्हारा धर्म है।”

धर्म में प्रेम, करुणा, दया और सहनशीलता होती है –
अघोरेश्वर भगवान राम धर्म का सहारा लेकर घृणित,विपरीत आचरण व पाखंड के सख्त खिलाफ थे ,वे सदैव समझाते थे कि -“धर्म में प्रेम, करुणा, दया और सहनशीलता होती है।धर्म की भावना से अनुप्राणित मनुष्य एक-दूसरे के खून का प्यासा नहीं होता। जो ऐसा करता है। वह धर्म से बहुत दूर है।”मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है,जो मानवता और महापुरुषों के गुणों को दे सकता है।धर्म के रास्ते पर चल सकता है और वह धर्म ऐसा होगा , जिसमें कभी खून – खराबा,पारस्परिक लूटपाट और छीन छपट की कोई गुंजाइश ही नहीं होगी।मानवता ही राष्ट्र है।
नहीं तो दुष्प्रज्ञ व्यक्ति ,राष्ट्र और समाज की आंखों में धूल झोंक कर अपकीर्ति एवं कुकृत्य करते हैं और कहते हैं कि यह सब धर्म है।अरे मूर्ख ! तुम्हारे पूर्वजों ने इन कृत्यों को कभी धर्म कहा है? तुम्हारे शास्त्र भी यह नहीं कहते ।”

घृणित कर्म,धर्म कैसे हो सकतें हैं?
घृणित कर्म,धर्म कैसे हो सकतें हैं? खून – खराबा और पारस्परिक लूटपाट महान पीड़ा , महान दुख की जननी बन गई है। ऐसे कृत्य करने वाले मनुष्य राष्ट्र या समाज के तरुण युवकों को गुमराह कर धर्म और ईश्वर के नाम पर धूल झोंकने वाले सरीखे जान पड़ते हैं रे! मनुष्य मनुष्य में भेद पैदा करते हैं।मनुष्य मनुष्य के साथ, भाई भाई के साथ एक मजहब के अनुयायी दूसरे मजहब के अनुयाइयों के साथ धोखाधड़ी कर खूनखराबा जैसे महाघृणित कृत्य के जन्मदाता बने हुए हैं।

‘ धर्म ऐसा नही होता ।स्वप्न में भी धर्म का रूप ऐसा नही होता।धर्म एक दूसरे के साथ मैत्री कारक होता है।स्नेह कारक होता है।धर्म तो संवेदन शील होता है ।धर्म बट – वृक्ष सा होता है।सभी को छाया प्रदान करने वाला है,चाहे वे किसी भी जाति , मज़हब के क्यों न हों।धर्म, आदर देने वाला, दिलाने वाला होता है।( अघोरेश्वर संवेदन शील से उद्धृत)

अंधविश्वास को भक्ति का आधार न बनाएं –
“बंधुओं! धर्म के नाम पर अपने देश में बहुत से आडंबर,अंधविश्वास हैं जिनकी आवश्यकता बिल्कुल नहीं है।फिर भी, दूसरों द्वारा कुछ अन्यथा सोच लेने के भय से ,तथा संकोच के चलते, उन्हें आप जबरदस्ती लादे फिर रहे हैं।ऐसे आडंबर से आपको क्षणिक राहत भले ही मिल जाये, परन्तु आप में स्थायी सुख शांति कभी नहीं आएगी।”किसी भी कार्य में आपको उक्ति की आवश्यकता होती है तभी वह सुचारू रूप से संपन्न होगा।यदि आपके पास युक्ति नहीं है सीधे सीधे भक्ति है तो यह लट्ठमार भी हो सकती है। ऐसी भक्ति आपको गुमराह भी कर सकती है। अंधविश्वास को भक्ति का आधार न बनाएं ।धर्म के नाम पर तथा गलत मान्यताओं के कारण,समाज में जो अनेक कुरीतियां फैली हैं,उनका उन्मूलन करो।जन समुदाय को प्रेरणा दो कि वे अंधविश्वास और आडंबर को छोड़कर सरल भाव से धार्मिक एवं सामाजिक कृत्यों का प्रतिपादन करें।

पूज्य अघोरेश्वर ने समाजिक उत्थान पर विशेष ध्यान दिया:-
अघोरेश्वर महाप्रभु आशीर्वचनों के माध्यम से बहुत स्नेह पूर्वक समझाते थे कि- “देश में रूढिवादिता एवं कुप्रथाएं समाज पर छाई हुई हैं। ये कुप्रथाएं देश में अनेक धर्मों के जन्म लेने के लिए उत्तरदायी हैं।इन्हीं के कारण विदेशों के पाश्चात्य देशों के अनेक धर्म भारत में आकर प्रश्रय पाये।पूज्य श्री अघोरेश्वर ने समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं दुर्व्यवस्थाओं के उन्मूलन को अपनी साधना का अंग बनाने के लिए प्रेरित किया।वे समझाते थे कि ‘जैसे अपने मकान में रोज झाड़ू लगाने की आवश्यकता पड़ती है, वैसे ही समाज में भी जो लोग भयंकर कूड़ा करकट और दूषित वातावरण पैदा कर रहे हैं और उनके साथ ही जो अवांछनीय तत्व हैं उनके उन्मूलन में सहयोग करो। समाज की कुरीतियों पर जिनसे प्राणियों का जीवन त्रस्त होता है, कड़ी नज़र रखो और उनके उन्मूलन के लिए प्रयत्नशील रहो।”
पूज्य अघोरेश्वर ने समाज की निम्न समस्याओं पर विशेष ध्यान दिया:-
1*नारी वर्ग को समाज में उचित सम्मान मिले।
2*ढोंगी साधुओं को सही रास्ता दिखाया जाय।
3*आध्यात्मिक अंधविश्वास को बढ़ावा न मिले।
4*तिलक दहेज की परंपरा को बंद किया जाए।
5*मरणोपरांत लेनदेन की क्रिया समाप्त हो।
6*जाती व्यवस्था का उन्मूलन हो।
7*उपेक्षितों, अपाहिजों एवं अनाथों को उचित सहायता मिले।
8*राजनीतिक नेताओं में सुविचार भरें।
9*नवयुवकों का उचित मार्गदर्शन करें।
10*छोटे बच्चों में संस्कार भरें।

रमता है सो कौन घट घट में-
*जो समय ,काल और कर्म था उसे पूर्ण कर 29 नवम्बर 1992 को देह त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए।महानिर्वाण के उस पल और क्षण में समूचे ब्रह्माण्ड का दृश्य अत्यंत ही अलौकिक हो उठा था।बनारस(काशी)अनुयायियों एवं भक्तगणों से खचाखच भर हुआ था।सभी के मन में एक ही भाव उठ रहा था कि अब हमारा क्या होगा?हम किनके श्रीचरणों में बैठकर अपना सुख-दुख सुनायेंगे?कौन हमारी पीड़ा हरेगा?कौन हमारी रक्षा और कल्याण करेगा?इतना असीम आत्मीय आनन्द अब हमें कहां मिलेगा,कौन देगा?
तभी अघोरेश्वर महाप्रभु की ही वाणी ढांढस बंधाती *”गुरु देह नहीं प्राण है, वह सदैव तुम्हारे अभ्यन्तर में निवास करता है।रमता है सो कौन घट घट में विराजत है ,रमता है सो कौन बता दे कोई ।”

परमपूज्य ब्रह्मलीन अघोरेश्वर महाप्रभु के श्री चरणों में सादर श्रद्धानत शत शत नमन करते हुए पवित्र वाणी सर्वजन कल्याणार्थ राष्ट्रहित में सादर समर्पित है। कोटि कोटि प्रणाम।

०००

• आलेख, गणेश कछवाहा
• रायगढ़ [छत्तीसगढ़]
• 94255 72284

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