कविता आसपास
4 years ago
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■तुम वैसी ही हो मेरे लिए.
-तारकनाथ चौधरी
तुम वैसी ही हो मेरे लिए
जैसे
देह में आग,कंठ में गान,
सरित में नीर,तूफां में तीर,
तुम
वैसी नहीं हो मेरे लिए
जैसे
विज़न उपवन, चंद्रहींन गगन,
मुक्ताहीन सीप,जोतविहीन दीप
तुम
वैसी ही हो मेरे लिए
जैसे
सुमन में गंध,गीत में छंद
नयन में दृष्टि, श्रावण में वृष्टि
तुम
वैसी भी नहीं हो मेरे लिए
जैसे
खंडित हो स्वप्न,खोटा हो रत्न
वृथा हो प्रयास, मृषा हो तलाश
तुम तो बस
वैसी ही हो मेरे लिए
पथिक को छांव, भटके को गांव,
भिक्षु को दान,तपी को ज्ञान.
[ ●सेवानिवृत्त शिक्षक तारकनाथ चौधरी, विगत 35 वर्षों से रचनात्मक लेखन में सक्रिय हैं. ●आकाशवाणी एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए उनकी पहली रचना प्रकाशित. ●प्रतिक्रिया से अवगत कराएं – संपादक ]
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