तुम्हारा स्नेह – सरस्वती धानेश्वर
4 years ago
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तुम्हारा यूं खामोश होकर देखना मुझे,
आश्वस्त कर देता है मेरी रूह को ।
स्नेह से भरा आमंत्रण,
एकांत में स्मृतियां पुकार रहीं हों जैसे ।
जन्म मरण से मुक्ति सदियों से मिलने को आतुर ।
वही मोड़ वही रास्ते, वही ख्यालों की पगडंडियां,
सधी हुई खामोश पदचाप ।
चुपके से पुकारती है मुझे ।
मेरी चेतना को आलोकित करता हुआ
तुम्हारा मृदु स्पंदन आल्हादित करता है मुझे |
झंकृत करता तुम्हारा मधुर स्वर , वीणा की सुरीली तान छेड़ता है
जैसे गूंजता कोई राग ।
मेरे मन मस्तिष्क को झकझोरता तुम्हारा मद्धिम स्वर,
और बज उठती है एक तरंग ।
मंत्र- मुग्ध करती रहस्यमय आभा, खींचती है तुम्हारी ओर ।
जड़वत कर देती है , देह बहने लगता है
अविरल प्रवाह एक सम्पूर्ण समर्पित सहज – भाव ।
मेरे आगोश में
सिर्फ प्रेम , हां प्रेम ।
कवयित्री संपर्क- 94241 36135
chhattisgarhaaspaas
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