कविता आसपास : दिलशाद सैफी
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🌸 सियासी रंग
– दिलशाद सैफी
[ रायपुर छत्तीसगढ़ ]
मारो मारो और मारो
बहा दो लहू इनका ये तो
कमज़र्फ़ है,बेगैरत भी
इन कमबख़्तो में अब
भला कौन शोर करेगा
अब अमन पसंद लोगों के
गली कुचों में भी
धार्मिक दंगों का जोर चलेगा
ये सियासी रंग है,,साहेब!
चुनावी दौर का
अभी तो और चढ़ेगा
रक्तबीज बोए जाएंगे
हैरान न होना तुम सब
फसलों के हरे रंग सुर्ख होंगे
धरती का भूरा रंग भी
अब लाल दिखेगा,
नयी फसलों से
नफरत की बूं आएंगी
नन्हें फूलों के बदन से जब
लहू ही लहू झड़ेगा
नहीं दिखने देंगे दरख़्त हरे
कुदरत के हर शय पे
सियासी रंग चढे़गा
ताक में रखे जायेंगे
मंदिर -मस्जिद
राम-रहिम का नाम भी
ब-खूब चलेगा
तुम देखना कोई दुराचारी
हिंसक धर्म का ठेकेदार
जब-जब किसी मुल्क का
पहरेदार बनेगा.
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