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रचना आसपास : उर्मिला शुक्ल

11 months ago
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दूर नहीं अब भोर
– उर्मिला शुक्ल
[ रायपुर : छत्तीसगढ़ ]

यूँ तो सारे जंगल खूबसूरत होते हैं। मगर जिस जंगल में जंगल और पहाड़ दोनों जुगलबंदी करते हों ,उसकी सुंदरता के क्या कहने। वहाँ पहाड़ी के पीछे से आकर सूरज जब पेड़ों के गले में गलबहिंयाँ डालता है ,,तब सागौन के दरख़्त ही नहीं सारा जंगल ही झूम उठता है।
वह एक ऐसी ही बहुत खूबसूरत भोर थी। दंडकारण्य की भोर । हवा के बढ़ते अल्हड़पन के बीच पूरब में पहले एक सिंदूरी रेखा सी खिंच आयी थी फिर उसमें लाली उतरने लगी थी और देखते ही देखते एक सिंदूरी थाल उसकी आँखों में उत्तर आया था। कितना सुंदर था वो सूरज , एकदम सिंदूर सा लाल. लाल। उस सिंदूरी आकर्षण में आबद्ध श्रद्धा टकटकी लगाये देख रही थी उसे ।तभी गेट की चरमराहट गूँजी तो, उसका तन्द्रा टूटी थी । उसने देखा समारु था।उसके बँगले का चौकीदार। उसने बताया था उसे कि यहाँ से बहुत दूर, घने वनों के बीच है उसका गाँवऔर श्रद्धा की कल्पना में उत्तर आयी थी भवानी प्रसाद मिश्र की कविता ‘ सतपुड़ा के घने जंगल ‘ शायद वैसे ही घने वनों के बीच है उसका गाँव , जिसके लिए भवानी प्रसाद मिश्र की ये पंक्तियाँ हमें आज भी ललकारती हैं –
“धँस सको तो धँसों इनमे , धँस न पाती हवा जिनमें।”
“आप जानता हय साब। उहाँ भरा भर दुपेहरी में भी साँझ जइसा अंधियार रहिता हय ।”कहते हुये उसके चेहरे पर रोमाँच नहीं एक उदासी सी घिर आया थी।
समारू से ही उसने जाना था कि वहाँ तो आज भी , इस इक्कीसवीं सदी में भी कुछ नहीं बदला है । मगर वे ? बदल रहे थे अब। बेहतर जीवन की चाह जाग उठी थी उनमें। तभी तो नौकरी के लिये इतनी दूर आया था समारू। उसने देखा, इस बार अकेला नहीं था वो। उसके साथ एक बच्ची भी थी । समारू उसकी ओर बढ़कर कुछ कदमों के फासले रुका , फिर घुटनों बल बैठकर ,धरती पर मस्तक रख कर ” जय जोहार साहिब ” कहा । अभिवादन का यही तरीका है यहाँ।शुरू शुरू में उसे बड़ा अटपटा लगता, जब पिता की उम्र का समारू उसे इस तरह जोहार करता सकुचा जाती थी वह ।उसने मना भी किया था ; मगर समारू नहीं माना थाऔर उसके प्रेम के आगे हार गई थी वह ।जोहार करने के बाद समारू ने मुड़कर देखा ,बच्ची अभी भी वहीं खड़ी थी
“‘ अरे ! तू अब्बी तलक वहींच खड़ा हय ? इदर आ। जोहार कर साहिब को। ” उसने बच्ची से कहा

समारू के कहने पर वो आगे बढ़ी और घुटनों के बल बैठ ही रही थी कि -” नहीं – नहीं! तुम तो बहुत छोटी हो, मेरी छोटी बहन जैसी हो तुम ।और हमारे यहाँ छोटी बहन पैर नहीं छुआ करती ” कहते हुये श्रद्धा ने उसे उठाकर अपने से लिपटा लिया था और उससे लिपटी वो अकचकाई सी देख रही थी उसे ,जो उसी की तरह थीं मगर उससे एकदम ही अलग थी। रूप रंग, बोली बानी, सबमें बिलकुल अलग।
” क्या नाम है तुम्हारा ?”श्रध्दा ने पूछा था।
मगर उसकी बात का कोई जवाब न देकर वो समारू के पीछे जा छुपी थी और समारू ने उसे बताया कि बुधिया नाम है उसका। गाँव के स्कूल से पाँचवी पास किया था उसने और आगे की पढ़ाई के लिये ,उसे उसके साथ आयी है । फिर उसने उससे आग्रह किया कि वह उसे शहर के किसी हास्टल वाले स्कूल में भर्ती करवा दे ,ताकि वो आगे पढ़ सके।
” साहिब बस आपके किरपा चाही ? ” कहते हुये वो उसके कदमों में झुक गया था और उसकी आँखें सजल सी हो उठीं थीं।
“अरे ! ये क्या ?तुम चिंता मत करो। मैं पूरी कोशिश करुँगी ।इसे एडमिशन जरूर मिलेगा। स्कूल में और हास्टल में भी ”
“बस तुम्हर किरिपा चाही साहिब। “कहते हुये वो कृतज्ञ सा हो उठा था । उस वनांचल में श्रद्धा का क्या प्रभाव है ,यह जनता था वो ।सो उसकी आँखों में एक आस्वस्ति सी उभर आयी थी ।
” अच्छा अब तुम लोग आराम करो। कल सुबह हो जाना । हम स्कूल चलेंगे ” कहते हुये श्रद्धा ने बुधिया गौर से देखा था –

औसत से छोटा कद, ग्रेनाइट सा चमकदार चेहरा , इतनी चमक थी उसके चेहरे पर कि शहर के सारे ब्यूटी पार्लर और ब्यूटी क्रीम के दावे बेकार थे उसके सामने। और बाल? बाल तो इतने घने , काले और घुँघराले थे कि खींच कर बाँधे जाने के बाद भी बहुत सी लटें उसके माथे पर उछल कूद मचा रही थीं । श्रद्धा ने देखा उसके बालों में जंगली फूलों का एक गुच्छा लगा था। गले में काँच की मोतियों की सतलड़ी माला थी ।कलाइयों में प्लास्टिक की चूड़ियाँ और पैरों में डालडा चाँदी की पायल थी ।और एक खासियत और भी थी उसमें ,जिसे बहुत बाद में जान पायी थी श्रद्धा । उसके के दाँत बहुत खूबसूरत थे ,बिल्कुल मोतियों की ,सफेद और चमकीले।

अगली सुबह शहर जाते समय जीप में बुधिया उसके बराबर की सीट पर बैठी थी। श्रद्धा ने देखा उसका लिबास तो वही था, मगर बालों में जंगली फूलों की जगह उसने गुलाब टाँक लिया था। स्त्रियाँ स्वभाव से श्रृंगारप्रिय ही होती हैं ,स्थान के अनुसार बस उसका स्वरूप बदल जाता है । ‘ सोचती श्रद्धा के चेहरे पर एक कोमल सी मुस्कान उभर आयी थी। स्कूल की प्रिंसिपल श्रद्धा को जानती थीं ,सो बिना किसी रुकावट के बुधिया एडमिशन हो गया था। बुधिया ने उससे कुछ कहा तो नहीं था मगर उसके चेहरे पर आई ख़ुशी बता रही थी कि स्कूल उसे पसंद आया है और समारू? वो जैसे निहाल ही हो उठा था। उसके सपनों को पंख जो मिल गये थे।

अब श्रद्धा जब भी शहर जाती ,बुधिया से जरूर मिलती थी । उसने देखा बुधिया अब बदलने लगी थी। साफ सुथरा यूनिफार्म , सुंदर सी दो चोटियाँ। प्लास्टिक की चूड़ियाों और काँच माला का न होना उसके परिवर्तन की गवाही दे रहे थे । श्रद्धा को अच्छा लगा था उसका ये बदलना और सबसे ज्यादा अच्छा लगा था उसका बोलना। वह अब उससे बोलने लगी थी । बहुत सी बातें बतायी थी उसने।मसलन – वार्डन बहिन जी किस चालाकी से दूध के पैकेट गायब कर देती हैं , और किस तरह हास्टल का राशन और सब्जियाँ उनके घर से होती हुई ;फिर से बाजार में पहुँच जाती हैं ।और भी बहुत सी बातें बतायीं थीं । स्कूल से लेकर अपनी और अपनी सहेलियों तक की न जाने कितनी कितनी बातें बतायीं थीं उसने।श्रद्धा ने महसूसा था कि अब वो खुलने लगी थी उससे।

समय के साथ बुधिया और भी निखर उठी थी। चढ़ती उम्र और मन की ख़ुशी ने मिलकर उसे और आकर्षक बना दिया था। अब वो नवी कक्षा में थी। अब गर्मियों में गाँव न जाकर उसके पास ही रुक गयी थी वह ।वह जितने दिन रही ,समारू के बदले उसी ने काम किया । उसे भी अच्छी लगती थी वह । बातों ही बातों में उसने ये भी बताया था कि वो भी उसी की तरह डॉक्टर बनना चाहती है।फिर जुलाई में स्कूल खुला और वो चली गई थी ।
श्रद्धा भी अपने काम में ऐसी उलझी किउसे शहर जाने की फुरसत ही नहीं मिली थी ।ये अँचल यूँ तो बहुत खूबसूरतथा ,मगर बरसात के आते ही उस इसके अधिकाँश गाँव बीमारियों के गढ़ ही बन जाते थे । उस बार तो मस्तिष्क ज्वर और मलेरिया ने तो ऐसा कहर बरपाया था कि सारे के सारे गाँव उसकी चपेट में आ गये थे ? सो इस गाँव से उस गाँव भागती ही रही थी वह ।उसकी भाग दौड़ इतनी बढ़ गई थी कि महीनों तक वह अपने बंगले पर भी लौट नहीं पायी थी। जिस गाँव में होती उसके करीब के रेस्ट हाउस में रुक जाती। कई बार गेस्ट हाउस बहुत दूर होता तो गाँव के मुखिया के घर भी रुक जाती थी। उस समय उसके लिये बीमारों का इलाज ही महत्वपूर्ण था। सो एक लम्बे समय के बाद घर लौटी थी वह और जब लौटी,तो एक सन्देस उसका इंतजार कर रहा था –

“डागदर साहिब ! आपको बुधिया का प्रिंसपल बलाया हय । ” उसके अटेंडेंट ने संदेश सुनाया।
“बुधिया की प्रिंसिपल ने बुलाया है ! मुझे ! पर क्यों ? ” कहते हुये उसकी प्रश्नाकुल नजरें अटेंडेंट के चेहरे पर जा टिकी थीं।

“का मालूम साहिब। फेर दू – तीन दिन ले रोजे संदेसा आ रहा हे। ”
‘समझ नहीं आ रहा है मुझे क्यों बुलवाया ! बुलवाना था तो समारू को बुलवाते .? ‘सोचा और “समारू कहाँ है “उसने उससे पूछा
“साहिब वो तो दू दिन ले रोजेच सहर जाथे। आजो भिनसारे ले गे हे। ”
दो तीन दिन से रोज शहर जाता है ?मगर क्यों ?इससे पहले तो कभी ऐसे …… कहीं बुधिया बीमार तो नहीं ?मगर हास्टल में डॉक्टर की सुविधा तो है !फिर मुझे …… ? ‘सोचकर उसकी व्याकुलता और बढ़ गई थी। सो तत्काल चल पड़ी थी मगर अपने बुलाये जाने का कारण नहीं समझ पा रही थी श्रद्धा ।ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ कि मुझे यूं —–?अपनी सोचों में उलझी वह कब स्कूल पहुँच गई थी उसे पता ही नहीं चला।जब जीप रुकी तो उसकी तन्द्रा टूटी। जीप से उतरकर प्रिंसिपल चैंबर की और बढ़ ही रही थी कि सामने समारू खड़ा नज़र आया था। पस्तहाल और खोया खोया सा था समारू ।
“क्या हुआ समारू ?तुम भी यहाँ हो ? और मुझे भी बुलवाया ….. ? “कहते हुये उसने उसकी और देखा ;उसे कुछ देर देखता रहा फिर उसे जवाब दिये बिना ही कम्पाउंड की
दीवार की ओर चला गया था वह ।समारू के इस व्यवहार ने उसे और भी चकित किया था ।उसका ये व्यव्हार उसकी समझ से परे था । सो अरे तुम उधर क्यों चले गये ?कहते हुये श्रद्धा उसके पास गयी ;देखा तो समारू रो रहा था ।
“अरे !ये क्या तुम रो क्यों रहे हो ?मैं हूँ न ।मुझे बताओ तो आखिर हुआ क्या कि तुम …….. ?”
मगर समारू कुछ कह पाता इससे पहले वार्डन आयीं और “अच्छा हुआ आप आ गयीं। चलिये मैडम आपका इंतजार कर रही हैं। “कहा उन्होंने तो श्रद्धा प्रिंसिपल चैंबर की ओर बढ़ गयी थी। वहाँ कुछ औपचारिक बातों के बाद प्रिंसिपल ने उसके हाथ में एक लिफ़ाफ़ा थमाया तो अकचकायी सी श्रद्धा की आँखों ने उनसे सवाल किया था। फिरआतुर हाथों ने लिफ़ाफ़ा खोला और उसे पढ़ते ही चौंक उठी ! और-

“ऐसा नहीं हो सकता ।ये सच नहीं है ।बुधिया जैसी लड़की ऐसा ….. ! ऐसा हो नहीं सकता। यह आरोप झूठा है। षड्यंत्र है उसके ख़िलाफ़ । ”
“मैडम आप ही सोचिये बिना वजह उस पर आरोप लगाकर भला हमें क्या मिलेगा ? हम क्यों षड्यंत्र करेंगे । हमारी भी तो बदनामी है इसमें। ” वे कह तो रही थीं ;मगर उनकी आँखें उनकी चुगली कर रही थाीं ।उनमें साफ साफ दिख रहा था कि वे झूठ बोल रही हैं। कुछ तो है जिसे छुपाने की कोशिश रही हैं।
श्रद्धा ने एक बार फिर देखा था , उस रिपोर्ट को: जिसके अनुसार बुधिया गर्भवती थी और स्कूल ने चरित्रहीन करार देकर उसे स्कूल से निष्काशित कर दिया था। मगर उसे विश्वास नहीं हुआ था। सो उसने बुधिया को बुलवाया। वह जानना चाहती थी कि अगर ये सच है, तो ये हुआ कैसे ?कौन है इसके पीछे? श्रद्धा को पूरा विश्वास था कि बुधिया चरित्रहीन नहीं हो सकती ।उसके साथ कुछ गलत ही हुआ होगा ;मगर बहुत पूछने पर भी बुधिया कुछ नहीं बोली थी ।श्रद्धा ने बहुत कोशिश की कि वो सच्चाई बता दे ;मगर उसकी कोशिश बेकार चली गई थी । हारकर उसने समारू को बुलवाया था कि शायद उससे ही कुछ पता चले ;मगर वो भी खामोश ही रहा और डबडबायी आँखों से उसे कुछ देर तक देखता रहा. फिर प्रिंसिपल के इशारे पर वो साथ बगल वाले कमरे में चला गया था । और-
“श्रद्धा जी मैं अभी आई ” कहकर। “प्रिंसिपल भी उसके पीछे चली गयी थीं।

अब वहाँ रह गयी थी वो और बुधिया। सो उसकी नजरें एक बार फिर बुधिया चेहरे पर जा टिकी थीं; मगर उसकी नजरें तो जैसे धरती में धँस ही गयी थीं। श्रद्धा की तमाम कोशिशों के बाद भी न तो उसने अपनी नजरें ऊपर उठाईं और न ही अपना मुह खोला था । बस अँगूठे से फर्श पर रेखायें खींचती रही थी । उलझी उलझी सी ,एक दूसरे को काटती तमाम रेखायें ,जिनका उस फर्श पर कोई वजूद नहीं था । मगर श्रद्धा बहुत को चैन कहाँ था ।वह जानना चाहती थी कि आखिर वो नर पिशाच है कौन ?और लड़कियों के इस हास्टल तक पहुंचा कैसे ?बिना किसी स्टाफ की मदद के तो ये मुमकिन ही नहीं है । आखिर यहाँ कौन ऐसा है जो इस कुकृत्य में शामिल है ?सो उसने फिर एक कोशिश की-

“बुधिया ! बताओ मुझे ।कौन है इसके पीछे ? घबराओ मत मैं हूँ न। उसे सजा जरूर- – – – -” कहती श्रद्धा उसकी ओर बढ़ी ही थी कि बुधिया लगभग दौड़ती हुई बाहर चली गयी थी और श्रद्धा अपने अधूरे वाक्य के साथ भौचक सी खड़ी रह गयी थी ।’फिर तो उसे यकीन ही हो गया था कि इसके पीछे जरूर कोई बड़ा आदमी है ,;जिसने इसे इस कदर भयभीत कर दिया है कि – – – – । पर वो है कौन ? अभी कुछ महीने पहले जब मैं इससे मिली थी ;तब तो सब ठीक था। ‘ सोचती हुई श्रध्दा की सोच में उभर आयी थी उससे वो पिछली मुलाकात – – – – –

. उस दिन बड़ी गहमागहमी थी उसके स्कूल में। स्वतन्त्रता दिवस था। इस बार अँचल के बड़े नेता और अफ़सर आये थे वहाँ। सो उनके स्वागत के लिये सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा गया था। । विद्यार्थियों की ओर से बुधिया ने ही उनका स्वागत किया था। सांस्कृतिक कार्यक्रम ,खासकर करमा नृत्य तो इतना अच्छा था कि सारे अतिथि वाह वाह कर उठे थे। उस करमा नृत्य की अगुआ भी बुधिया ही थी ।सो सब उसी की प्रसंशा कर रहे थे। ‘सोचती हुई श्रद्धा की आँखों में बुधिया की वो छवि उत्तर आयी थी- लाल पाड़ की सफेद साड़ी और मोगरे के गहनों में बहुत ही सुंदर लग रही थी वह ।उस दिन बहुत खुश थी वो। स्कूल में उसके बढ़ते महत्व से श्रद्धा भी बहुत खुश थी ।सब तो ठीक था। फिर ऐसा क्या हुआ कि – – – – ?’ और अपनी सोचों में डूबी श्रद्धा को पता भी नहीं चला कि प्रिंसिपल ने समारू से क्या बातें कीं । मगर उस कमरे के बाहर आते हुये ;उसकी झुकी हुई आँखें कुछ और झुक गयी थीं।

फिर वे जब लौट रहे थे ,तब लग रहा था जैसे वे एक दूसरे से बिलकुल ही अनजान हों। उनके बीच एक अनचाहा सा मौन पसर गया था ;मगर श्रद्धा चाहती थी कि वो मौन टूटे और कुछ इस तरह टूटे कि अपराधी बच ही न पाये ।सो उसने ही पहल की –

” घबराओ नहीं समारू ! हम एफ.आई. आर. करेंगे। कोर्ट जायेंगे हम ।तुम देखना , जिसने भी ये कुकृत्य किया है उसे सजा जरूर मिलेगी ।”
” किया फाइदा साहिब ! वो बड़ा आदमी हैं साहिब। फेर पानी म रहिके मंगर संग बइर? नइ ये ठीक नइ हे साहिब । “कहकर खिड़की से बाहर देखने लगा था वो।
“ये क्या कह रहे हो समारू ? अपराधी को दंड तो मिलना ही चाहिये ! फिर ये तो तुम्हारी बच्ची की जिंदगी का सवाल है ! “कहकर श्रध्दा ने उसकी और देखा ।

” दंड ? कउन देगा दंड ?सब दंड तो सिरिफ हमरे खातिर हय । हमर संग त हमीसा ले येहिच होवत आय हे । पहिली राजा रजवार रहिन फेर जंगल के ठेकादार अउ अब साहिब अउ नेता। हमर लिये त नियाय न त पहिली रहिस, न अब हे ।ये देखव साहिब ये हे हमर नियाव । ” कहकर समारू ने अपने गमछे की गाँठ खोली। और श्रद्धा ने देखा हजार हजार के बहुत से नोट थे उसमें । शायद बीस ,तीस या उससे भी अधिक। “येही हे हमर इजत ? येही हे हमर कीमत ?” कहते हुये फफक उठा था वो।

और श्रद्धा हतप्रभ सी देख रही थी ,कभी समारू को ,तो कभी उन रुपयों को, जो बुधिया की कीमत थे । उसकी देह की और उसके सपनों की कीमत लगाई थी उन्होंने ‘!तो एक लड़की के जीवन की कीमत हैं , ये चंद रूपये ? ‘सोचकर उसका अंतस दहक ही उठा था और उसने एक बार और कोशिश की। और-
” नहीं समारू! ऐसे रोओ नहीं। तुम हौसला रखो। अब पहले जैसा बिलकुल नहीं है। अब समय बदल गया है ।न्याय अब सबके लिये है। बुधिया को न्याय मिलेगा । ”

“नई साहिब। बस अब अउ नइ । अब कुछु नइ चाही हमला । बहुत गलती करेन के पढ़े लिखे के सपना पालेन। फेर मिलिस का ?ये तकलीत अउ ये आँसु ?” कहते हुये उसने बुधिया की ओर इशारा किया था और फिर उसके आगे हाथ जोड़ दिये थे।
अब इसके आगे क्या कहती भला ।सो विवश होकर उसने बुधिया की ओर देखा। मगर वो तो जैसे वहाँ थी ही नहीं। जीप की रफ़्तार के साथ, पीछे छूटते पेड़ों में न जाने क्या तलाश रही थी वो। मगर श्रद्धा ?उसके लिये यूँ चुप रहना संभव नहीं था । भीतर ही भीतर खदबदा रही थी वो। सो चुप नहीं बैठ पायी थी वोऔर मामले की तह में जाकर उसने जो कुछ जाना; उसने तो उसे हिला कर रख दिया था – – – –

इसमें सिर्फ बुधिया का हास्टल ही नहीं ;इलाके के कई हास्टल इस घिनौने काम में लिप्त थे। ये अफसरों और नेताओं की अय्याशी के अड्डे बन चुके थेऔर इन हास्टल की वार्डन और प्रिंसिपल ही इस काम को अंजाम देतीं थीं। बदले में उन्हें रुपयों के साथ -साथ मनचाहा प्रमोशन भी मिलता था।ये भेड़िये निरीक्षण या उद्घाटन के बहाने वहाँ जाते और हास्टल की लड़कियों को कभी बहला , तो कभी अच्छी नौकरी का झाँसा देकर अपना शिकार बनाते थे । जो इन झाँसों में नहीं आतीं ,उन्हें वे डरा धमकाकर उनका इस्तेमाल करते थे ।सबको अपने अपने हिस्से मिल जाया करते थे। पुरुषों को तो दोहरे फायदे थे।प्रमोशन के साथ ही , उनके शिकार के बाद ,बचा कुचा माँस चीथने को भी मिल ही जाता था और कभी कभी शिकार करने का मौका भी।अपनी देह को भी ठीक से न समझ पाने वाली उन छोटी छोटी बच्चियों को , गर्भपात जैसी शारीरिक यातना से भी गुजरना पड़ता।वहाँ की वार्डन और प्रिंसिपल ही किसी दाईनुमा औरत के सहारे ; गर्भपात जैसे कुकृत्य को इस तरह अंजाम देती कि सब ढँका मुंदा ही रहता । इस बार भी सब ढँका ही रह जाता, अगर बुधिया ने भी उनकी बात मान ली होती ;मगर अपने धर्म में गहरी आस्था रखने वाली बुधिया इस गर्भपात जैसे पाप के लिये तैयार नहीं हुई थी ।
और उनके प्रलोभन अस्त्र भी जब उस पर कोई असर नहीं डाल पाये ,तब चरित्रहीनता के शस्त्र से उसे बेध दिया गया था। साथ ही उसे वह धमकी भी दी गई थी; जिसने उसकी आवाज़ ही छीन ली थी । बुधिया कायर नहीं थी। वो उनसे लड़ना भी चाहती थी। मगर अपने बाबा को खोकर तो कदापि नही। वे उसके आधार थे और अपना वो आधार खो देने की कल्पना मात्र से सिहर उठी थी वो। इसलिये खामोशी ओढ़ ली थी उसने ।

श्रद्धा ? वो चाहती थी कि अपराधियों को दंड मिले ,ताकि ये शोषण रुके ;पर उसके पास सबूत नहीं थे। और जिनके पास सबूत थे, वे खामोश थे ।सो उसकी सारी कोशिशें बेकार हो गई थीं और विवश होकर वो भी खामोश हो गई थी। बुधिया कुछ दिन तो उसके बंगले पर रही ।फिर अपने गाँव चली गयी थी और समारू ? वो तो भीतर ही भीतर टूट सा गया था। सो वो भी कुछ दिन तक रहा फिर नौकरी छोड़करअपने गाँव चला गया था। मगर बुधिया?उसकी वो खामोश छवि तो जैसे श्रद्धा के मन में समा कर रह गयी थी। बहुत दिनों तक तो वह भूल ही नहीं पायी थी उसे ।फिर समय के साथ ,सब कुछ धूमिल हो चला था।

फिर एक अरसे बाद आज जब उसे इस ड्यूटी का आदेश मिला ,तो सब कुछ फिर से ताजा हो उठा था। जंगल के भीतर के किसी गाँव में छात्रावास का उद्घाटन था । बड़े बड़े नेता और अफसर आने वाले थे वहाँ । सरकारी नौकर थी वह। सो वी आई पी ड्यूटी में तैनात किया गया था उसे ।
नया नया राज्य बना था और ये पहला छात्रावास था जिसमें शहर जैसी सुविधायें दी गयी थीं। उसे वनवासी गांवों के बीच ही बनाया गया था।ताकि उन्हें अपने परिवेश से दूर न जाना पड़े और वे उस वनांचल में ही रहकर शिक्षा ग्रहण कर सकें। आज के सारे समाचार पत्र ऐसे ही समाचारों से भर पड़े थे।मगर श्रद्धा की आँखों में घूम उठी थी बुधिया। ‘तो शोषण का एक और केंद्र खुल रहा है आज । ‘ सोचकर ही उसका मन कसैला सा हो उठा था; मगर ड्यूटी तो ड्यूटी थी। सो जाना तो था ही ।

सुबह होते ही निकल पड़ी थी वह । दूरी तो बहुत नहीं थी ;मगर रास्ता बहुत खराब था।सो पहुँचते पहुँचते दोपहर ढल चली थी। बहुत थक गई थी वह ,मगर आराम करने का समय नहीं था। सो डाक बंगला न जाकर सीधे स्कूल ही जा पहुँची थी और वहाँ के संस्था प्रमुख ने ,जब उसका स्वागत किया ,तो आश्चर्य और ख़ुशी से भरी श्रद्धा के मुँह से निकल पड़ा था –
“अरे !तुम !” उसके सामने जो था, वो तो कल्पनातीत ही था। उसके सामने बुधिया खड़ी थी। उसने तो सोचा भी नहीं था कि कभी उससे मुलाकात होगी और वो भी इस रूप में। उसे लगा था कि औरों की तरह वो भी अपने घर परिवार में रच बस गयी होगी। मगर………

इसी बीच वहाँ एक युवक भी आ पहुँचा था। उसके साथ एक बच्चा था। सफेद हाफ पैंट और शर्ट में बड़ा सलोना लग रहा था वो बच्चा । बुधिया ने परिचय कराया “ये हैं मेरे पति सुकालू। और ये मेरा बेटा। ”
“बड़ा प्यारा बच्चा है । क्या नाम है तुम्हारा ? ” उसने बच्चे से पूछा।
“अंजोल कुमाल। ” उसने तुतलाते हुये अपना नाम बताया।
“अपना नाम ठीक से बोलो। बोलो अँजोर कुमार। “बुधिया ने कहा।
बच्चे ने फिर दुहराया” अंजोल कुमाल । ” और फिर वो बाहर की तरफ भाग गया था ।
‘अंजोर ! यानी प्रकाश ।’श्रध्दा चकित थी बुधिया के साहस पर जिसने अपने जीवन के अँधेरे को उजाले में बदल दिया और साथ ही वह नतमस्तक थी उस समाज के सामने ;जो इतना समदर्शी था क़ि वो औरत को भी इंसान मानता है।उसे भी जीवन जीने का अवसर देता है। उसने देखा उसके पति को , खिला खिला सा निश्छल चेहरा था उसका।उसमें न कोई शर्मिंदगी थी और न ही अहसान करने का अंहम ।लग ही नहीं रहा था कि वह उसका बच्चा नहीं है । ‘कितना अच्छा है इनका समाजऔर ये पुरुष। पुरुषत्व दंभ से एकदम दूर ।जो किसी और के बच्चे को भी इतनी सहजता से अपना लेते है।और सबसे बड़ी बात यहाँ स्त्रियों को लांक्षना भी नहीं ढोनी पड़ती ।एक हमारा समाज है ,जहाँ निर्दोष हो कर भी औरत ही सजा पाती है ।उसके जीने की सारी राहें बन्द कर दी जाती हैं ।सो विवश हो कर वो या तो वो आत्महत्या कर लेती है या फिर दर दर की ठोकरें खाती किसी कोठे तक पहुँचा दी जाती है।काश हमारी तथाकथित सभ्यता यह देख पाती कि वास्तविक सभ्यता कहाँ है ।’ सोचती श्रद्धा की विचार धारा टूटी थी बुधिया की आवाज़ से –
” दीदी चलिये न ,कुछ खा लीजिये ।भूख भी लगी होगी आपको ।”
भूख तो लग ही आयी थी उसे और अतिथियों के आने में अभी देर भी थी;सो उसके साथ चल पड़ी थी वह ।नाश्ते के दरम्यान बुधिया ने उसे बताया कि किस तरह उसने ये मुकाम हासिल किया है ।घरवालों के विरोध के बाद भी उसने अपनी पढ़ाई पूरी की ।स्वाध्यायी के रूप में हाई स्कूल ,फिर हायर सेकेण्डरी और फिर बी.ए.किया उसने ।अच्छे नम्बरों से पास होने और ट्राइबल बेल्ट की होने के कारण उसे नौकरी भी आसानी से मिल गयी थी ।”सुकालू बहुत अच्छा है दीदी ।उसने हर कदम पर मेरा साथ दिया ।”कहते हुए बहुत खुश थी वह ।
फिर अतिथि आये और मुख्य अतिथि भी। उन्हें छात्रावास का उदघाटन करना था ।सो उनके स्वागत के लिये बुधिया उत्साह से आगे बढ़ी और फि रएकाएक ठिठक गयी थी ।श्रद्धा ने देखा उसके चेहरे की रंगत बदलने लगी थी ।उसने उनका स्वागत करके उन्हें जैसे तैसे मंच पर पहुँचाया और फिर ———-
श्रद्धा ने गौर किया ,छात्रावास के उदघाटन में वो उपस्थित नहीं थी ।बाकी कार्यक्रमों में भी अतिथियों को समारू और सुकालू ने ही सम्हाला और उन्हें विदा भी किया।श्रद्धा समझ नहीं पायी थी कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि बुधिया यूँ गायब —! उसे तो यहाँ होना था। कहीं उसकी तबीयत तो ख़राब .नहीं ….. /’ ‘सोचती हुई श्रद्धा का मन वहाँ लग नहीं रहा था । मगर ड्यूटी तो पूरी करनी ही थी ।

सो वहाँ से फुर्सत मिलते ही श्रध्दा तत्काल भीतर गयी ,तो !——उसने देखा-बुधिया फफक फफक कर रो रही थीऔरश्रध्दा ने जब उसके कंधे पर हाथ रखा, तो उसका स्पर्श पाते ही वो उससे लिपट गयी और फिर बुक्का फाड़कर रो पड़ी थी ।श्रद्धा चकित थी ।जो बुधिया उस दिन भी नहीं रोयी थी ,जब उसके सारे सपने खाक कर दिए गये थे ।वही बुघिया आज …?तभी –
“दीदी ये वही आदमी है जिसने मेरा—।कहते हुये शेष शब्द उसकी रुलाई में बह चले थे ।” और वो और भी जोर जोर रो ने लगी थी ।उसके रुदन का वेग इतना तीव्र था कि रोते रोते उसकी हिचकी बन्ध गयी थी ।मगर उसकी रुलाई रूकती ही न थी ।रह रह कर एक लहर सी आती और वो उसमें बहकर दूर चली जाती ।’नारी का मन भी कितना अदभुत होता है ।स्वेक्छा से तो वह अपना सर्वस्व लुटा देती है ,मगर बलात् की पीड़ा ,उससे सही नहीं जाती है। अपनी देह के इस अपमान पर वो सहज नहीं रह पाती और भीतर भीतर छीजती रहती है ।इस कदर असहनीय होती है ये पीड़ा कि जिस समाज की स्त्रियों का दैहिक पवित्रता से दूर दूर का नाता ही नहीं होता ;वे भी अपनी देह के इस अपमान पर आजीवन तड़फती हैं । ‘सोचती श्रद्धा बूधिया को देख रही थी ;जिसके चेहरे पर पीड़ा और अपमान का एक सागर सा लहरा रहा था और वो उसमें डूबती जा रही थी।
‘आहत नारीत्व सालता ही है और उसकी चिलकन तो असहनीय ही होती है ।समाज की तमाम उदरतायें भी इसे मिटा नहीं पातीं ।’सोचती श्रध्दा के हाथ तो उसकी पीठ को सहला रहे थे ;उसका मगर मन भटक रहा था उस बियावान में जहाँ ….. ।”तो बुधिया का शिकारी कोई बाहरी नहीं था ,उसकी अपनी बिरादरी का हीथा वो। फिर क्या फर्क रहा उसमें और उस बाहरी समाज में जो इनका शोषक माना जाता है ।देश आजादहो गया ।इक्कीसवीं सदी भी आ गयी ।सदी तो बदल गयी ;मगर इनके लिये क्या बदला? वही शोषण तो आज भी है इनके जीवन में । हाँ शोषकों की संख्या जरूर बढ़ गयी है।शोषकों में अब इनके अपने कहलाने वाले ,इनकी अपनी बिरादरी के लोग जो शामिल हो गए हैं।छोटी मछलियों को निगलती बड़ी मछलियाँ । क्या यही विकास है ?’सोचती श्रद्धा की आँखों में उभर आयी थीं कुर्सियाँ ,छोटी बड़ी अनेक कुर्सियाँ ।फिर धीरे धीरे उन कुर्सियों पर उभर आयी थीं कुछ तोंदें जिनके बढ़ते आयतन में सब कुछ समाता जा रहा था। क्या कभी रुकेगा ये सब /”सोचती श्रद्धा की तन्द्रा टूटी थी बुधिया के और जोर से रोने से । अब वो और भी जोर जोर से रोने लगी थी । श्रद्धा पहले कुछ समझ नहीं पायी थी फिर उसने ने देखा ,सामने सुकालु खड़ा था ।शायद इसीलिये इसकी रुलाई सारे बाँध तोड़ कर बह चलीहै ।’श्रध्दा ने सोचा और –
“न $$न।ऐसे नहीं रोते ।रोते तो कमजोर हैं ।तुम तो बहादुर हो ।तुमने तो कितनी बहादुरी से ——-”
“कहाँ दीदी । काहे की बहादुरी ।मैं कुछ भी तो नहीं कर पायी थी उसकाऔर अभी भी कितनी विवश हूँ मैं कि जिसने मेरे अस्तित्व को रौंदा था ,मैंने उसी का स्वागत किया !फूलों से ! “कहकर वो फिर बिलख उठी थी और देर तक रोती ही रही थी। ।शायद इतने सालों की संचित पीड़ा थी जो आज बह रही थी मगर रोते रोते अचानक रुकी वो ।फिर-
” मगर अब और नहीं ।”और इन्हीं शब्दों के साथ उसके चेहरे पर बहआये आँसुओं के बीच उभर आयी थी एक दृढ़ता ;जो कह रही थी “नहीं !अब तुम्हारे मन्सूबे सफल नहीं होगें । ये कोई बकरी की बाड़ नहींहै । माँद है ,शेरनी की माँद है ।”
श्रद्धा ने देखा पश्चिम दिशा में सूरज डूब गया था ;मगर उसकी लालिमा से आवृत हो उठ था बुधिया का चेहरा। श्रद्धा आश्वस्त थी ।उसका विश्वास कह रहा था कि इसी लालिमा से ही निकलेगा कल का सूरज । उजास और उष्मा से भरी उस भोर की आहट सुन रही थी वो।

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इस माह के ग़ज़लकार : डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘सब्र’

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कविता आसपास : तारकनाथ चौधुरी

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गाँधी जयंती पर विशेष : जन कवि कोदूराम ‘दलित’ के काव्य मा गाँधी बबा : आलेख, अरुण कुमार निगम

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रचना आसपास : ओमवीर करन

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कवि और कविता : डॉ. सतीश ‘बब्बा’

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स्मृति शेष : स्व. ओमप्रकाश शर्मा : काव्यात्मक दो विशेष कविता – गोविंद पाल और पल्लव चटर्जी

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हरेली विशेष कविता : डॉ. दीक्षा चौबे

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‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के संपादक व कवि प्रदीप भट्टाचार्य के हिंदी प्रगतिशील कविता ‘दम्भ’ का बांग्ला रूपांतर देश की लोकप्रिय बांग्ला पत्रिका ‘मध्यबलय’ के अंक-56 में प्रकाशित : हिंदी से बांग्ला अनुवाद कवि गोविंद पाल ने किया : ‘मध्यबलय’ के संपादक हैं बांग्ला-हिंदी के साहित्यकार दुलाल समाद्दार

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कविता आसपास : पल्लव चटर्जी

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सत्य घटना पर आधारित कहानी : ‘सब्जी वाली मंजू’ : ब्रजेश मल्लिक

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चर्चित उपन्यासत्रयी उर्मिला शुक्ल ने रचा इतिहास…

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कहानी : ‘ पानी के लिए ‘ – उर्मिला शुक्ल

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व्यंग्य : ‘ घूमता ब्रम्हांड ‘ – श्रीमती दीप्ति श्रीवास्तव [भिलाई छत्तीसगढ़]

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दुर्गाप्रसाद पारकर की कविता संग्रह ‘ सिधवा झन समझव ‘ : समीक्षा – डॉ. सत्यभामा आडिल

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लघुकथा : रौनक जमाल [दुर्ग छत्तीसगढ़]

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लघुकथा : डॉ. दीक्षा चौबे [दुर्ग छत्तीसगढ़]

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🌸 14 नवम्बर बाल दिवस पर विशेष : प्रभा के बालदिवस : प्रिया देवांगन ‘ प्रियू ‘

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■लघुकथा : ए सी श्रीवास्तव.

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■लघुकथा : तारक नाथ चौधुरी.

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■बाल कहानी : टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’.

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■होली आगमन पर दो लघु कथाएं : महेश राजा.

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तीन लघुकथा : रश्मि अमितेष पुरोहित

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व्यंग्य : देश की बदनामी चालू आहे ❗ – राजेंद्र शर्मा

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लघुकथा : डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय [केंद्रीय विद्यालय वेंकटगिरि, आंध्रप्रदेश]

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जोशीमठ की त्रासदी : राजेंद्र शर्मा

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18 दिसंबर को जयंती के अवसर पर गुरू घासीदास और सतनाम परम्परा

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जयंती : सतनाम पंथ के संस्थापक संत शिरोमणि बाबा गुरु घासीदास जी

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व्यंग्य : नो हार, ओन्ली जीत ❗ – राजेंद्र शर्मा

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🟥 अब तेरा क्या होगा रे बुलडोजर ❗ – व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा.

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🟥 प्ररंपरा या कुटेव ❓ – व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

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▪️ न्यायपालिका के अपशकुनी के साथी : वैसे ही चलना दूभर था अंधियारे में…इनने और घुमाव ला दिया गलियारे में – आलेख बादल सरोज.

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▪️ मशहूर शायर गीतकार साहिर लुधियानवी : ‘ जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है, जंग क्या मसअलों का हल देगी ‘ : वो सुबह कभी तो आएगी – गणेश कछवाहा.

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▪️ व्यंग्य : दीवाली के कूंचे से यूँ लक्ष्मी जी निकलीं ❗ – राजेंद्र शर्मा

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25 सितंबर पितृ मोक्ष अमावस्या के उपलक्ष्य में… पितृ श्राद्ध – श्राद्ध का प्रतीक

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🟢 आजादी के अमृत महोत्सव पर विशेष : डॉ. अशोक आकाश.

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🟣 अमृत महोत्सव पर विशेष : डॉ. बलदाऊ राम साहू [दुर्ग]

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🟣 समसामयिक चिंतन : डॉ. अरविंद प्रेमचंद जैन [भोपाल].

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⏩ 12 अगस्त- भोजली पर्व पर विशेष

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■पर्यावरण दिवस पर चिंतन : संजय मिश्रा [ शिवनाथ बचाओ आंदोलन के संयोजक एवं जनसुनवाई फाउंडेशन के छत्तीसगढ़ प्रमुख ]

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■पर्यावरण दिवस पर विशेष लघुकथा : महेश राजा.

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■व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा.

राजनीति न्यूज़

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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उदयपुर हत्याकांड को लेकर दिया बड़ा बयान

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■छत्तीसगढ़ :

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भारतीय जनता पार्टी,भिलाई-दुर्ग के वरिष्ठ कार्यकर्ता संजय जे.दानी,लल्लन मिश्रा, सुरेखा खटी,अमरजीत सिंह ‘चहल’,विजय शुक्ला, कुमुद द्विवेदी महेंद्र यादव,सूरज शर्मा,प्रभा साहू,संजय खर्चे,किशोर बहाड़े, प्रदीप बोबडे,पुरषोत्तम चौकसे,राहुल भोसले,रितेश सिंह,रश्मि अगतकर, सोनाली,भारती उइके,प्रीति अग्रवाल,सीमा कन्नौजे,तृप्ति कन्नौजे,महेश सिंह, राकेश शुक्ला, अशोक स्वाईन ओर नागेश्वर राव ‘बाबू’ ने सयुंक्त बयान में भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव से जवाब-तलब किया.

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भिलाई कांड, न्यायाधीश अवकाश पर, जाने कब होगी सुनवाई

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धमतरी आसपास

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स्मृति शेष- बाबू जी, मोतीलाल वोरा

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छत्तीसगढ़ कांग्रेस में हलचल

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राज्यसभा सांसद सुश्री सरोज पाण्डेय ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से कहा- मर्यादित भाषा में रखें अपनी बात

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मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने डाॅ. नरेन्द्र देव वर्मा पर केन्द्रित ‘ग्रामोदय’ पत्रिका और ‘बहुमत’ पत्रिका के 101वें अंक का किया विमोचन

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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, ग्वालियर में प्रेस वार्ता

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